Hindi Poem of Sahir Ludhianvi “Kabhi Kabhi“ , “कभी कभी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

कभी कभी

 Kabhi Kabhi

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कि ज़िन्दगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाँव में 

गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी 

ये तीरगी जो मेरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है 

तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी  

अजब न था के मैं बेगाना-ए-अलम रह कर 

तेरे जमाल की रानाईयों में खो रहता 

तेरा गुदाज़ बदन तेरी नीमबाज़ आँखें 

इन्हीं हसीन फ़सानों में महव हो रहता  

पुकारतीं मुझे जब तल्ख़ियाँ ज़माने की 

तेरे लबों से हलावट के घूँट पी लेता 

हयात चीखती फिरती बरहना-सर, और मैं 

घनेरी ज़ुल्फ़ों के साये में छुप के जी लेता  

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है 

के तू नहीं, तेरा ग़म, तेरी जुस्तजू भी नहीं 

गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िन्दगी जैसे 

इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं  

ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले 

गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी रह्गुज़ारों से  

महीब साये मेरी सम्त बढ़ते आते हैं 

हयात-ओ-मौत के पुरहौल ख़ारज़ारों से  

न कोई जादह-ए-मंज़िल न रौशनी का सुराग़ 

भटक रही है ख़लाओं में ज़िन्दगी मेरी 

इन्हीं ख़लाओं में रह जाऊँगा कभी खोकर 

मैं जानता हूँ मेरी हमनफ़स मगर फिर भी  

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.