Hindi Poem of Nander Sharma “  Maya”,”माया” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

माया

 Maya

 

दिखाती  पहले  धूप  रूप  की ,

दिखाती  फ़िर  मट  मैली  काया!

दुहरी  झलक  दिखा  कर  अपनी

मोह – मुक्त  कर  देती  माया!

असम्भाव्य  भावी  की  आशा ,

पूर्ति  चरम  शाश्वत  आपूर्ति  की ,

ललक  कलक  में  झलक  दिखाती

अनासक्त  आसक्ति मूर्ति  की!

अंत  सत्य  को  सुगम  बना तू 

हरी  की  अगम  अछूती  छाया!

मन  में  हरी , रसना  पर  षड-रस  ,

अधर  धरे  मुस्कान  सुहानी!

हरी  तक  उसे नचाती लाती 

हरी  की जिसने  बात  न  मानी!

शकुन  दिखा कर अंध तनय  को ,

हरी-माया  ने  खेल  दिखाया !

संग्न्याहत  हो  या  अनात्मारत 

आत्म  मुग्ध  या  आत्म  प्रपंचक ,

पहुँचाया  है हर  झूठे  को ,

माया  ने  झूठे  के  घर  तक !

लगन  लगा  कर  , मोह  मगन  को ,

मृग  लाल  , जल  निधि  पार  कराया !

अंहकार  को  निराधार  कर  ,

निरंकार  के  सम्मुख  लाती !

गिरिजापति  का  मान  बढ़ाने

रति  के  पति  को  भस्म  कराती !

नेह  लगाया  यदि  माया  से ,

निज  को  खो , हरी  – हर  को  पाया !

अपनी  समझ  लिए  हर कोई ,

करता  रहता  तेरी  – मेरी !

वोह  अनेक  जन  मन  विलासिनी 

एक  मात्र  श्री  हरी  की  चेरी !

मैंने  इस  सहस्ररूपा  को ,

राममयी  कह  शीश  झुकाया !

 

 

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