Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Dhare raho mo pe”,”ढरे रहो मो पे” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

ढरे रहो मो पे

 Dhare raho mo pe

 

संकर को पोटि के पियाय दियो घोर विष

असुरन को छल से छकाय दई वारुणी

मिलि-बाँटि देवन सों आप सुधा पान कियो

मणि सै लीन्हीं अरु लक्ष्मि मन-भावनी

तेरो ही प्रताप सारे खारे समुन्दर भे

तेरी इहै बान तू सबै का नचावत है

आप छीर -सागर में आँख मूँद सोय जात

लच्छिमी से आपुने चरन पलुटावत है

नारद सो भक्त ताकेी छाती पे मूँग दरी

सभा माँझ बानर को रूप दे पठाय के

उचक-उचक रह्यो मोहिनी बरैगी मोंहिं

बापुरो खिस्यायो तोसों सबै विधि हार के

अब सो बिगार मेरो कर्यो ना हे रमापति,

तोरी सारी पोल नाहिं खोलिहौं बखान के

ढरे रहो मो पे नहीं चुप्पै रहौंगी नहिं

खरी-खरी बात बरनौंगी जानि-जानि कै

कोऊ उपाओ मेरे काज सुलटाय देओ

स्वारथ न मेरो, सामर्थ तेरो ही दियौ

ऐसो न होय तो से वीनती है मोर,

कहूँ धरो रह जाय मेरो सारो करो-धरो!

तोरा विसवास तो अब तब ही करौंगी

जब देख लिहौं के तू मेरे संग ठाड़ो आय के,

चोर रे कन्हैया,चाल खेलत जनम बीत्यो,

करौंगी सिकायत उहाँ जसुमति से जाय के!

 

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