Hindi Poem of Ravindra Bharamar “Sur pankhi“ , “सुर-पाँखी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सुर-पाँखी

 Sur pankhi

प्राणों के पिंजरे में पाला,

साँस-साँस में गाया,

बड़े जतन से वह सुर-पाँखी मेरे बस में आया।

साँझ-सकारे मन-बंसी पर मैंने उसको टेरा,

रसना की रेशमी धार पर दिन दुपहरिया फेरा,

अक्षर-मंत्र, शब्द के टोने, स्वर के बान चलाए

धीरे-धीरे उस निर्मम से कुछ अपनापा पाया।

बड़े जतन से वह सुर-पाँखी मेरे बस में आया।

जाने किस अनुराग पगीं उसकी रतनारी आँखें,

किस पीड़ा के नील रंग में रंगी हुई हैं पांखें,

उसके गहरे प्रेमराग को बूझ न पाया अब तक

अतुल स्नेह से उसके पंखों को हर क्षण सहलाया।

बड़े जतन से वह सुर-पाँखी मेरे बस में आया।

उसके रोम-रोम में महके वन-फूलों की प्रीत,

उसकी हर थिरकन में गूँजे घाटी का संगीत,

उसकी बोली में गूंगा आकाश मुखर हो जाए

मैंने शब्द-तूलिका से उसका यह चित्र बनाया।

बड़े जतन से वह सुर-पाँखी मेरे बस में आया।

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