Hindi Poem of Sahir Ludhianvi “Jab kabhi un ke tavajjo me kami pai gai“ , “जब कभी उन के तवज्जो में कमी पाई गई” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जब कभी उन के तवज्जो में कमी पाई गई

 Jab kabhi un ke tavajjo me kami pai gai

जब कभी उन के तवज्जो में कमी पाई गई

अज़ सर-ए-नव-ए-दास्तान-ए-शौक़ दोहराई गई

बिक चुके जब तेरे लब फिर तुझ को क्या शिकवा अगर

जि़न्दगानी बादा-ओ-साग़र से बहलाई गई

ऐ ग़म-ए-दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते

किन बहानों से तिबयत राह पर लाई गई

हम करें तकर्-ए-वफ़ा अच्छा चलो यूं ही सही

और अगर तकर्-ए-वफ़ा से भी न रुस्वाई गई

कैसे कैसे चश्म-ओ-आरिज़ गदर्-ए-ग़म से बुझ गए

कैसे कैसे पैकरों की शान-ए-ज़ेबाई गई

दिल की धड़कन में तवज्ज़ुन आ चला है ख़ैर हो

मेरी नज़रे बझ गयीं या तेरी रानाई गई

उन का ग़म उन का तस्व्वुर उन के शिकवे अब कहाँ

अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गयीं आई गई

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मेरे ख्वाबों के झरोकों को सजाने वाली

 Mere khwabo ke jharokho ko sajane wali

अक़ायद वहम है मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी

अज़ल से ज़हन-ए-इन्सां बस्त-ए-औहाम है साक़ी

हक़ीक़त-आशनाई अस्ल में गुम-कदर्ह-राही है

उरूस-ए-आगही परवरदह-ए-अबहाम है साक़ी

मुबारक हो जाईफ़ी को ख़िरद की फ़लसफ़ादानी

जवानी बेनियाज़-ए-इब्रत-ए-अन्जाम है साक़ी

अभी तक रास्ते के पेच-ओ-ख़म से दिल धड़कता है

मेरा ज़ौक़-ए-तलब शायद अभी तक ख़ाम है साक़ी

वहाँ भेजा गया हूँ चाक करने पर्दे-ए-शब को

जहाँ हर सुबह के दामन पे अक्स-ए-शाम है साक़ी

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