Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “ Chalo Ghoom Aaye“ , “चलो घूम आयें” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

चलो घूम आयें

 Chalo Ghoom Aaye

उठो, कब तक बैठी रहोगी

इस तरह अनमनी

चलो घूम आएँ।

तुम अपनी बरसाती डाल लो

मैं छाता खोल लेता हूँ

बादल –

वह तो भीतर बरस रहे हैं

झीसियाँ पड़नी शुरु हो गई हैं

जब झमाझम बरसने लगेंगे

किसी पेड़ के नीचे खड़े हो जाएँगे

पेड़ –

उग नहीं रहा है तेज़ी से

हमारी-तुम्हारी हथेलियों के बीच

थोड़ी देर में देखना, यह एक

छतनार दरख़्त में बदल जाएगा ।

और कसकर पकड़ लो मेरा हाथ

अपने हाथों से

उठो, हथेलियों को गर्म होने दो

इस हैरत से क्या देखती हो?

मैं भीग रहा हूँ

तुम अगर यूँ ही बैठी रहोगी

तो मैं भी भीग-भीगकर

तुम्हें भिगो दूँगा।

अच्छा छोड़ो

नहीं भीगते

तुम भीगने से डरती हो न!

उठो,  देखो हवा

कितनी शीतल है

और चाँदनी कितनी झीनी, तरल, पारदर्शी,

रास्ता जैसे बाहर से मुड़कर

हमारी धमनियों के जंगल में

चला जा रहा है ।

उठो घूम आएँ

कब तक बैठी रहोगी

इस तरह अनमनी ।

इस जंगल की

एक ख़ास बात है

यहाँ चाँद की किरणें

ऊपर से छनकर

दरख़्तों के नीचे नहीं आतीं,

नीचे से छनकर ऊपर

आकाश में जाती हैं।

अपने पैरों के नाखूनों को देखो

कितने चाँद जगमगा रहे हैं।

पैर उठाते ही

शीतल हवा लिपट जाएगी

मैं चंदन हुआ जा रहा हूँ

तुम्हारी चुप्पी के पहाड़ों से

खुद को रगड़कर

तुम्हारी त्वचा पर फैल जाउंगा।

अच्छा जाने दो

त्वचा पर चंदन  का

सूख जाना तुम्हें पसंद नहीं!

फिर भी उठो तो

ठंडी रेत है चारों तरफ

तलुओं को गुदगुदाएगी, चूमेगी,

तुम खिलखिला उठोगी।

कब तक बैठी रहोगी

इस तरह अनमनी।

यह रेत

मैंने चूर-चूर होकर

तुम्हारी राह में बिछाई है।

तुम जितनी दूर चाहना

इस पर चली जाना

और देखना

एक भी कण तुम्हारे

पैरों से लिपटा नहीं रहेगा

स्मृति के लिए भी नहीं।

उठो, कब तक बैठी रहोगी

इस तरह अनमनी

चलो घूम आएं।

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