Hindi Poem of Vijaydev Narayan Sahi “Ban jata diptivan“ , “बन जाता दीप्तिवान” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बन जाता दीप्तिवान

Ban jata diptivan

सूरज सवेरे से

जैसे उगा ही नहीं

बीत गया सारा दिन

बैठे हुए यहीं कहीं

टिपिर टिपिर टिप टिप

आसमान चूता रहा

बादल सिसकते रहे

जितना भी बूता रहा

सील रहे कमरे में

भीगे हुए कपड़े

चपके दीवारों पर

झींगुर औ’ चपड़े

ये ही हैं साथी और

ये ही सहभोक्ता

मेरे हर चिन्तन के

चिन्तित उपयोक्ता

दोपहर जाने तक

बादल सब छँट गये

कहने को इतने थे

कोने में अँट गये

सूरज यों निकला ज्यों

उतर आया ताक़ से

धूप वह करारी, बोली

खोपड़ी चटाक से

ऐसी तच गयी जैसे

बादल तो थे ही नहीं

और अगर थे भी तो

धूप को है शर्म कहीं?

भीगे या सीले हुए

और लोग होते हैं

सूरज की राशि वाले

बादल को रोते हैं?

ओ मेरे निर्माता

देते तुम मुझको भी

हर उलझी गुत्थी का

ऐसा ही समाधान

या ऐसा दीदा ही

अपना सब किया कहा

औरों पर थोपथाप

बन जाता दीप्तिवान ।

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