Hindi Poem of Gopal Prasad Vyas “Ab Murakh bano“ , “अब मूर्ख बनो!” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अब मूर्ख बनो!
Ab Murakh bano

बन चुके बहुत तुम ज्ञानचंद,
बुद्धिप्रकाश, विद्यासागर?
पर अब कुछ दिन को कहा मान,
तुम लाला मूसलचंद बनो!
अब मूर्ख बनो, मतिमंद बनो!

यदि मूर्ख बनोगे तो प्यारे,
दुनिया में आदर पाओगे।
जी, छोड़ो बात मनुष्यों की,
देवों के प्रिय कहलाओगे!
लक्ष्मीजी भी होंगी प्रसन्न,
गृहलक्ष्मी दिल से चाहेंगी।
हर सभा और सम्मेलन के
अध्यक्ष बनाए जाओगे!

पढ़ने-लिखने में क्या रक्खा,
आंखें खराब हो जाती हैं।
चिंतन का चक्कर ऐसा है,
चेतना दगा दे जाती है।
इसलिए पढ़ो मत, सोचो मत,
बोलो मत, आंखें खोलो मत,
तुम अब पूरे स्थितप्रज्ञ बनो,
सच्चे संपूर्णानन्द बनो ।
अब मूर्ख बनो, मतिमंद बनो!

मत पड़ो कला के चक्कर में,
नाहक ही समय गंवाओगे।
नाहक सिगरेटें फूंकोगे,
नाहक ही बाल बढ़ाओगे ।
पर मूर्ख रहे तो आस-पास,
छत्तीस कलाएं नाचेंगी,
तुम एक कला के बिना कहे ही,
छह-छह अर्थ बताओगे।

सुलझी बातों को नाहक ही,
तुम क्यों उलझाया करते हो?
उलझी बातों को अमां व्यर्थ में,
कला बताया करते हो!
ये कला, बला, तबला, सारंगी,
भरे पेट के सौदे हैं,
इसलिए प्रथमतः चरो,
पुनः विचरो, पूरे निर्द्वन्द्व बनो,
अब मूर्ख बनो, मतिमंद बनो!

हे नेताओ, यह याद रखो,
दुनिया मूर्खों पर कायम है।
मूर्खों की वोटें ज्यादा हैं,
मूर्खों के चंदे में दम है।
हे प्रजातंत्र के परिपोषक,
बहुमत का मान करे जाओ!
जब तक हम मूरख जिन्दा हैं,
तब तक तुमको किसका ग़म है?

इसलिए भाइयो, एक बार
फिर बुद्धूपन की जय बोलो!
अक्कल के किवाड़ बंद करो,
अब मूरखता के पट खोलो।
यह विश्वशांति का मूलमंत्र,
यह राम-राज्य की प्रथम शर्त,
अपना दिमाग गिरवीं रखकर,
खाओ, खेलो, स्वच्छंद बनो!
अब मूर्ख बनो, मतिमंद बनो!

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