Hindi Poem of Shriprakash Shukal “  Ret me subah”,”रेत में सुबह” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

रेत में सुबह

 Ret me subah

 

सुबह बेला

एक मुटठी रेत में उठता हुआ वह

एक तिनका

चमक उठता है चांदनी सदृश

एक बूंद ओस के साथ

सुदूर घिसटती हुई टेन की आवाज़

कुहरे को ठेलती हुई

छिक-छिक करती

स्वप्न कुछ साकी जैसे इधर-उधर विखरे

अलसाती नदी उठ रही है

तट सुहाने छोड़कर

एक मुटठी रेत

चहुँ ओर वात प्रसरित

खेत हैं बस खेत

कूचियाँ ये भर रही कुछ रंग

सूर्य है कि सिर नवाता

पाँव छूता

दे रहा है रेत को कुछ अंग

लोग हैं कि आ रहे

रुक रहे

झुक रहे

देख इनके ढंग!

 

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